17-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

पद्मापद्म भाग्यशाली की निशानी

पद्मापद्म भाग्यशाली बनाने वाले बापदादा अपने निरन्तर सेवाधारी बच्चों प्रति बोले:-

‘‘भाग्य विधाता बाप सभी भाग्यवान बच्चों को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण आत्मा भाग्यवान आत्मा है। ब्राह्मण बनना अर्थात् भाग्यवान बनना। भगवान का बनना अर्थात् भाग्यवान बनना। भाग्यवान तो सभी हैं लेकिन बाप के बनने के बाद बाप द्वारा जो भिन्न-भिन्न खज़ानों का वर्सा प्राप्त होता है उस श्रेष्ठ वर्से के अधिकार को प्राप्त कर अधिकारी जीवन में चलाना वा प्राप्त हुए अधिकार को सदा सहज विधि द्वारा वृद्धि को प्राप्त करना इसमें नम्बरवार बन जाते हैं। कोई भाग्यवान रह जाते, कोई सौभाग्यवान बन जाते। कोई हजार, कोई लाख, कोई पद्मापद्म भाग्यवान बन जाते। क्योंकि खज़ाने को विधि से कार्य में लगाना अर्थात् वृद्धि को पाना। चाहे स्वयं को सम्पन्न बनाने के कार्य में लगावें, चाहे स्वयं की सम्पन्नता द्वारा अन्य आत्माओं की सेवा के कार्य में लगावें। विनाशी धन खर्चने से खुटता है, अविनाशी धन खर्चने से पद्मगुणा बढ़ता है। इसलिए कहावत है - खर्चो और खाओ। जितना खर्चेंगे-खायेंगे उतना शाहों का शाह बाप और मालामाल बनायेंगे। इसलिए जो प्राप्त हुए खज़ाने के भाग्य को सेवा अर्थ लगाते हैं वह आगे बढ़ते हैं। पद्मापद्म भाग्यवान अर्थात् हर कदम में पद्मों की कमाई जमा करने वाले और हर संकल्प से वा बोल, कर्म सम्पर्क से पदमों को पदमगुणा सेवाधारी बन सेवा में लगाने वाले। पद्मापद्म भाग्यवान सदा फराखदिल, अविनाशी, अखण्ड महादानी, सर्व प्रति सर्व खज़ाने देने वाले - दाता होंगे। समय वा प्रोग्राम प्रमाण, साधनों प्रमाण सेवाधारी नहीं। अखण्ड- महादानी। वाचा नहीं, तो मंसा वा कर्मणा। सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा किसी न किसी विधि द्वारा अखुट अखण्ड खज़ाने के निरन्तर सेवाधारी। सेवा के भिन्न-भिन्न रूप होंगे लेकिन सेवा का लंगर सदा चलता रहेगा। जैसे निरन्तर योगी हो वैसे निरन्तर सेवाधारी। निरन्तर सेवाधारी सेवा का श्रेष्ठ फल निरन्तर खाते और खिलाते रहते। अर्थात् स्वयं ही सदा का फल खाते हुए प्रत्यक्ष स्वरूप बन जाते हैं।

पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा सदा पद्म-आसन निवासी अर्थात् कमल पुष्प स्थिति के आसन निवासी, हद के आकर्षण और हद के फल को स्वीकार करने से न्यारे और बाप तथा ब्राह्मण परिवार के, विश्व के प्यारे। ऐसी श्रेष्ठ सेवाधारी आत्मा को सर्व आत्मायें सदा दिल के स्नेह के खुशी के पुष्प चढ़ाते हैं। स्वयं बापदादा भी ऐसे निरन्तर सेवाधारी पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा प्रति स्नेह के पुष्प चढ़ाते। पद्मापद्म भाग्यवान आत्मा सदा अपने चमकते हुए भाग्य के सितारे द्वारा अन्य आत्माओं को भी भाग्यवान बनाने की रोशनी देते। बापदादा ऐसे भाग्यवान बच्चों को देख रहे थे। चाहे दूर हैं, चाहे सन्मुख हैं लेकिन सदा बाप को दिल में समाये हुए हैं। इसलिए समान सो समीप रहते। अब अपने आप से पूछो - मैं कौन-सा भाग्यवान हूँ? अपने आपको तो जान सकते हैं ना। दूसरे के कहने से मानो वा न मानो लेकिन स्वयं को सब जानते हैं कि मैं कौन हूँ। समझा। फिर भी बापदादा कहते हैं - भाग्यहीन से भाग्यवान तो बन गये। अनेक प्रकार के दु:ख-दर्द से तो बचेंगे। स्वर्ग के मालिक तो बनेंगे। एक है स्वर्ग में आना। दूसरा है राज्य अधिकारी बनना। आने वाले तो सब हो लेकिन कब और कहाँ आयेंगे यह स्वयं से पूछो। बापदादा के रजिस्टर में स्वर्ग में आने की लिस्ट में नाम आ गया। दुनिया से तो यह अच्छा है। लेकिन अच्छे से अच्छा नहीं है। तो क्या करेंगे? कौन-सा जोन नम्बरवन जायेगा? हर जोन की विशेषता अपनी- अपनी है।

महाराष्ट्र की विशेषता क्या है? जानते हो? महान तो है ही लेकिन विशेष विशेषता क्या गाई जाती है! महाराष्ट्र में गणपति की पूजा ज्यादा होती है। गणपति को क्या कहते हैं? विघ्न विनाशक। जो भी कार्य आरम्भ करते हैं तो पहले श्रीगणेशाय नम: कहते हैं। तो महाराष्ट्र वाले क्या करेंगे? हर महान कार्य में श्री गणेश करेंगे ना! महाराष्ट्र अर्थात् सदा विघ्न-विनाशक राष्ट्र। तो सदा विघ्नविनाशक बन स्वयं और अन्य के प्रति इसी महानता को दिखायेंगे! महाराष्ट्र में विघ्न नहीं होना चाहिए। सब विघ्न-विनाशक हो जाएँ। आया और दूर से नमस्कार किया। तो ऐसा विघ्न विनाशक ग्रुप लाया है ना! महाराष्ट्र को सदा अपनी इस महानता को विश्व के आगे दिखाना है। विघ्न से डरने वाले तो नहीं हो ना! विघ्न-विनाशक चैलेंज करने वाले हैं। वैसे भी महाराष्ट्र में बहादुरी दिखाते हैं। अच्छा!

यू.पी. वाले क्या कमाल दिखायेंगे? यू.पी. की विशेषता क्या है? तीर्थ भी बहुत हैं, नदियाँ भी बहुत हैं, जगतगुरू भी वहाँ ही हैं। चार कोने में चार जगतगुरू हैं ना। महामण्डलेश्वर यू.पी. में ज्यादा हैं। हरि का द्वार यू.पी. का विशेष है। तो हरि का द्वार अर्थात् हरि के पास जाने का द्वार बताने वाले सेवाधारी यू.पी. में ज्यादा होने चाहिए। जैसे तीर्थ स्थान के कारण यू.पी. में पण्डे बहुत हैं। वह तो खाने-पीने वाले हैं लेकिन यह है सच्चा रास्ता बताने वाले रूहानी सेवाधारी पण्डे। जो बाप से मिलन मनाने वाले हैं। बाप के समीप लाने वाले हैं। ऐसे पाण्डव सो पण्डे यू.पी. में विशेष हैं! यू.पी. को यह विशेष पाण्डव सो पण्डे का प्रत्यक्ष रूप दिखाना है। समझा!

मैसूर की विशेषता क्या है? वहाँ चन्दन भी है और विशेष गार्डन भी हैं। तो कर्नाटक वालों को विशेष सदा रूहानी गुलाब, सदा खुशबूदार चन्दन बन विश्व में चन्दन की खुशबू कहो, अथवा रूहानी गुलाब की खुशबू कहो, विश्व को गार्डन बनाना है। और विश्व में चन्दन की खुशबू फैलानी है। चन्दन का तिलक दे खुशबूदार और शीतल बनाना है। चन्दन शीतल भी होता है। तो सबसे ज्यादा रूहानी गुलाब कर्नाटक से निकलेंगे ना। यह प्रत्यक्ष प्रमाण लाना है। अभी सबको अपनी-अपनी विशेषता का प्रत्यक्ष रूप दिखाना है। सबसे खिले हुए खुशबूदार रूहानी गुलाब लाने पड़ें। लाये भी हैं, कुछ-कुछ लाये हैं लेकिन गुलदस्ता नहीं लाया है। अच्छा!

विदेश की महिमा तो बहुत सुनाई है। विदेश की विशेषता है - डिटैच भी बहुत जोर से होंगे तो अटैच भी जोर से होंगे। बापदादा विदेशी बच्चों का न्यारा और प्यारापन देख हर्षित होते हैं। वह जीवन तो बीत गई। जितना फँसे हुए थे उतने ही अब न्यारे भी हो गये। इसलिए विदेश का ‘न्यारा और प्यारापन’ बापदादा को भी प्यारा लगता है। इसलिए विशेष बापदादा भी यादप्यार दे रहे हैं। अपनी विशेषता में समा गये हो! ऐसे न्यारे और प्यारे हो ना! अटैचमेन्ट तो नहीं है ना? फिर भी देखो, विदेशी मेहमान होकर घर में आये हैं तो मेहमानों को सदा आगे किया जाता है। इसलिए भारतवासियों को विदेशियों को देख विशेष खुशी होती है। कई ऐसे गेस्ट होते जो होस्ट बन वैठ जाते हैं। विदेशियों की सदा यही चाल रही है। गेस्ट बन आते और होस्ट बन बैठ जाते। फिर भी अनेक दिवारों को तोड़कर बाप के पास सो आपके पास आये हैं, तो ‘‘पहले आप’’ तो कहेंगे ना! ऐसे तो भारत की विशेषता अपनी, विदेशी की अपनी है। अच्छा-

84 घण्टों वाली देवियाँ मशहूर हैं। तो अभी 84 में घण्टा बजायेंगे वा और भी अभी इन्तजार करें! विदेश में तो डर से जी रहे हैं। तो कब घण्टे बजायेंगे। विदेशी बजावें वा देश बजावे। 84 माना चारों ओर के घण्टे बजें। जब समाप्ति में आरती करते हैं तो जोर-जोर से घण्टे बजाते हैं ना - तब समाप्ति होती है। आरती का होना माना समाप्ति होना। तो अब क्या करेंगे? अच्छा-

सभी पदम-आसनधारी पद्मापद्म भाग्यवान, सदा हर सेकण्ड, हर संकल्प में निरन्तर सेवाधारी, सदा फराखदिल बन सर्व खज़ानों को देने वाले, मास्टर दाता, सदा स्वयं की सम्पन्नता द्वारा औरों को भी सम्पन्न बनाने वाले, श्रेष्ठ भाग्य अधिकारी, सदा श्रेष्ठ सबूत देने वाले सपूत बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पंजाब निवासियों प्रति:- बाप बैठा है इसलिए सोचने की जरूरत नहीं है, जो होगा वह कल्याणकारी है। आप तो सबके हो। न हिन्दू हो न सिक्ख हो। बाप के हो तो सबके हो। पाकिस्तान में भी यही कहते थे ना - आप तो अल्लाह के बन्दे हो, आपको किसी बात से कनेक्शन नहीं। इसलिए आप ईश्वर के हो, और किसी के नहीं। क्या भी हो लेकिन डरने वाले नहीं। कितनी भी आग लगे बिल्ली के पूँगरे तो सेफ रहेंगे लेकिन जो योगयुक्त होंगे वही सेफ रहेंगे। ऐसे नहीं, कहे मैं बाप की हूँ और याद करे दूसरो को! ऐसे को मदद नहीं मिलेगी। डरो नहीं, घबराओ नहीं, आगे बढो। याद की यात्रा में, धारणाओं में, पढ़ाई में सब सबजेक्ट से आगे बढ़ो। जितना आगे बढेंगे उतना सहज ही प्राप्ति करते रहेंगे।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सभी अपने को इस सृष्टि ड्रामा के अन्दर विशेष पार्टधारी समझते हो? कल्प पहले वाले अपने चित्र अभी देख रहे हो! यही ब्राह्मण जीवन का वन्डर है। सदा इसी विशेषता को याद करो कि क्या थे और क्या बन गये! कौड़ी से हीरे तुल्य बन गये। दु:खी संसार से सुखी संसार में आ गये। आप सब इस ड्रामा के हीरो हीरोइन एक्टर हो। एक-एक ब्रह्माकुमार-कुमारी बाप का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी हो। भगवान का सन्देश सुनाने वाले सन्देशी कितने श्रेष्ठ हुए! तो सदा इसी कार्य के निमित्त अवतरित हुए हैं। ऊपर से नीचे आये हैं यह सन्देश देने - यही स्मृति खुशी दिलाने वाली हैं। बस, अपना यही आक्यूपेशन सदा याद रखो कि खुशियों की खान के मालिक हैं। यही आपका टाइटिल है।

2. सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें अनुभव करते हो? सच्चे ब्राह्मण अर्थात् सदा सत्य बाप का परिचय देने वाले। ब्राह्मणों का काम है कथा करना, तुम कथा नहीं करते लेकिन सत्य परिचय सुनाते हो। ऐसे सत्य बाप का सत्य परिचय देने वाले, ब्राह्मण आत्मायें हैं, यही नशा रहे। ब्राह्मण देवताओं से भी श्रेष्ठ हैं। इसलिए ब्राह्मणों का स्थान चोटी पर दिखाते हैं। चोटी वाले ब्राह्मण अर्थात् ऊँची स्थिति में रहने वाले। ऊँचा रहने से नीचे सब छोटे होंगे। कोई भी बात बड़ी नहीं लगेगी। ऊपर बैठकर नीचे की चीज़ देखो तो छोटी लगेगी। कभी कोई समस्या बड़ी लगती तो उसका कारण नीचे बैठकर देखते हो। ऊपर से देखो तो मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। तो सदा याद रखना - चोटी वाले ब्राह्मण हैं, इसमें बड़ी समस्या भी सेकण्ड में छोटी हो जायेगी। समस्या से घबराने वाले नहीं लेकिन पार करने वाले समस्या का समाधान करने वाले।

आज सवेरे (18-4-1984) अमृतवेले भुवनेश्वर के एक भाई ने हार्टफेल होने से अपना पुराना शरीर मधुबन में छोड़ा उस समय अव्यक्त बापदादा के उच्चारे हुए महावाक्य

सभी ड्रामा की हर सीन को साक्षी हो देखने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो ना! कोई भी सीन जो भी ड्रामा में होती है उसको कहेंगे कल्याणकारी। नथिंग न्यू। (उनकी लौकिक भाभी से) क्या सोच रही हो? साक्षीपन की सीट पर बैठ सब दृश्य देखने से अपना भी कल्याण है और उस आत्मा का भी कल्याण है। यह तो समझती हो ना! याद में शक्ति रूप हो ना। शक्ति सदा विजयी होती है। विजयी शक्ति रूप बन सारा पार्ट बजाने वाली। यह भी पार्ट है। पार्ट बजाते हुए कभी भी और कोई संकल्प नहीं करना। हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। अभी उस आत्मा को शान्ति और शक्ति का सहयोग दो। इतने सारे दैवी परिवार का सहयोग प्राप्त हो रहा है। इसलिए कोई सोचने की बात नहीं है। महान तीर्थ स्थान है ना! महान आत्मा है, महान तीर्थ है। सदा महानता ही सोचो। सभी याद में बैठे हो ना! एक लाडला बच्चा, अपने इस पुराने शरीर का हिसाब पूरा कर अपने नये शरीर की तैयारी में चला। इसलिए अभी सभी उस भाग्यवान आत्मा को शान्ति, शक्ति का सहयोग दो। यही विशेष सेवा है। क्यों, क्या में नहीं जाना लेकिन स्वयं भी शक्ति स्वरूप हो, विश्व में शान्ति की किरणें फैलाओ। श्रेष्ठ आत्मा है, कमाई करने वाली आत्मा है। इसलिए कोई सोचने की बात नहीं। समझा!